बाबा जी ओर हजूर जी ने इस रविवार को डेरा में सत्संग फरमाया

बाबा जी ने रविवार को डेरा में सत्संग फरमाया और आज आपने तुलसी साहब जी की बाणी ली थी दिल का हुजरा साफ कर। आज हजूर जी ने बाबा जी की शाल भी पहन रखी थी। आज बाबा जी ने सबसे छोटा सत्संग सिर्फ 52 मिनट का फरमाया। जब बाबा जी स्टेज पर आए तो शब्द दुख भंजन तेरा नाम जी चल रहा था। बाबा जी ने कहा यह तुलसी साहब की बाणी है। मुसलमान जिज्ञासु को तुलसी साहिब के पास लाया गया था। आप शुरुआत करते हैं दिल का हुजरा साफ कर तो जरूरी नहीं कि कुछ गंदा हो जाए तो उसको ही साफ करना पड़ता है। हम तो घर की सफाई रोज ही करते हैं ताकि उसके अंदर मैल ना जमे। 

बाबा जी बोले हुजरा किसको बोलते हैं? हुजरा उसको बोलते हैं जो दिल का एक बिल्कुल आखरी कोना होता है। जब हम हुजरा साफ करेंगे तो हो सकता है फिर हम उसकी भक्ति के लायक बनेंगे। अगर बर्तन गंदा है इसको साफ करेगे तो वह साफ होना शुरू हो जाता है। बाबा जी ने कहा हमारे मन के ऊपर कर्मों की बहुत ही ज्यादा मैल चढ़ी हुई है। मन तू जोत स्वरूप है अपना मूल पहचान, बाबा जी बोले कि तेरा जो असल था वह तो प्रकाश था। यह गंदगी अपने सफर में तूने इकट्ठी करी है। हम चल तो पड़ते हैं परमार्थ के रास्ते पर लेकिन हमें युक्ति नहीं पता होती। 

अगर युक्ति नहीं पता होगी तो आगे नहीं बढ़ पाएंगे। बाबा जी आगे बोले कि गैर कौन है? जिसको हम अपना समझते हैं वह गैर हैं। अंत समय हमारा कौन साथ निभा सकता है? तो आपने फरमाया राम गयो रावण गयो। महाराज जी इनको मिठे ठग कह के बयान किया करते थे। जो अपना हक जता के हमारे को धोखा दे जाते हैं। जो सबसे नजदीक हमारा रिश्ता है वह शरीर के साथ है। बाबा जी कहते हमारा शरीर साथ नहीं देता तो हमारा साथ और कौन देगा? बाबा जी ने कहा जो जरूरत के वक्त काम आए वो असल मीत है। आगे बाबा जी ने बच्चे की उदाहरण दी। बच्चा मेले में जाता है और जब बाप की उंगली छोड़ देता है तो वो उसी मेले में रोना शुरू कर देता है। और जो चीजें उसको अच्छी लग रही थी वही चीजें उसको खाने को पड़ती हैं। 

बाबा जी ने कहा क्या हमने अपने उस कुल मालिक का हाथ पकड़ा हुआ है? हम कह देते हैं जी हमारे पास तो परमपिता परमात्मा के लिए वक्त नहीं है। इस बात को बोलते हुए बाबा जी का गला भर आया। फिर बाबा जी ने कहा कर्मों का हिसाब किताब हमने देना है तो कैसे कर्मों के हिसाब किताब से बचेंगे? तो आपने फरमाया शब्द कर्म की रेख कटाए शब्द शब्द से जाय मिलाए। कभी हम ओहदे या धन दौलत के पीछे भागते हैं तो आप कहते सहजो भाई ने कहा था धनवंत दुखी। हमने तमाशे से निकलकर सच का एहसास करना है। बाबा जी ने फरमाया कि देखो ये जरूरी नहीं है कि कुछ गंदा हो जाए तभी हमें उसे साफ करना चाहिए हम देखें कि हम अपने घर की सफाई हर रोज करते हैं ताकि उसमें मैल ना जम जाए, गंदगी इकट्ठी ना हो जाए और साफ सुथरा घर ही हमारे बैठने के लायक है। अब हम यहां पर देखें कि हुजरा किसे कहा जाता है? हुजरा हमारे दिल का एक कोना होता है। 

अगर हम अपने दिल को साफ रखेंगे तब ही ये मालिक के बैठने के लायक बनेगा। और आप जी ने गुरुवाणी की तुक फरमाते हुए कहा कि जन्म जन्म की इस मन को मन लागी। बाबा जी ने कहा कि देखो हमारे मन के ऊपर हमारे दिल के ऊपर जन्मों जन्मों की मैले चढ़ी हुई हैं। कर्मों की परतें चढ़ी हुई हैं। अगर हम उसे साफ करेंगे तब वो साफ होंगी तभी हम अपने मन के असल चेहरे को देख पाएंगे। बाबा जी ने उदाहरण देते हुए फरमाया कि देखो आपके घर में कोई बर्तन है और जिसे काफी समय से धोया नहीं गया है अब उस पर मैल की परत चढ़ी हुई हैं। अगर आप कोशिश करोगे उसे रगड़े जाओगे तो उससे मैल अलग हो जाएगी। और आपको उस बर्तन का असल चेहरा उसकी असल चमक नजर आएगी। इसी प्रकार हमारा मन है हमारे मन के ऊपर भी कर्मों की अनेकों परत चढ़ी हुई हैं और काम क्रोध लोभ मोह अहंकार की मैल इकट्ठी हुई है। 

अगर हम इसे दूर करेंगे तभी हमें इस मन का असल चेहरा इसकी असल चमक नजर आएगी। बाबा जी फरमाते हैं कि देखो मन बहुत सच्चा सुच्चा था इसकी अवस्था कुछ और है। बाबा जी ने गुरबाणी की तुक फरमाते हुए कहा कि देखो आप जी लिखते हैं कि मन तू जोत स्वरूप है अपना मूल पहचान। बाबा जी ने कहा कि देखो इसका असल स्वरूप प्रकाश है और गंदगी इसने अपने रास्ते में इकट्ठी की है। और बाबा जी ने आगे फरमाया कि हम मालिक की तरफ उसकी याद में परमार्थ की ओर तो सभी चलते हैं पर हमें जब तक असल युक्ति का नहीं पता तो हमें परमार्थ का असल ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। देखो हम परमार्थ के नाम पर बाहरी रस्मों कर्मों में उलझ कर रह जाते हैं हमें यह सोचना चाहिए कि हमारा असल साथ कौन देगा। 

कौन हमारे साथ अंत तक चलेगा? यहां पर हम अपने शरीर की बात ही ले ले ये तो शमशान घाट तक ही साथ निभा सकता है इसके आगे नहीं चल सकता। आप जी ने नौवी पातशाही जी की तुक फरमाते हुए कहा कि "नाम रेहो साधु रहो रहो गुरु गोविंद" कि यही चीजें जहां पर अटल हैं और कोई चीज हमारा साथ नहीं निभाएगी। हमें अपने शरीर का भी माण नहीं करना चाहिए। हजूर जी इस दुनिया को तमाशा कहकर बयान करते थे। तमाशा हम किसे कहते है जिसका असल नहीं होता। अभी हमारा दायरा शरीर के साथ जुड़ा हुआ है और शरीर तक ही सीमत है। इसीलिए हमें यह सब सच लग रहा है और मोह माया के जाल में फंसे हुए हैं। 

Posted by:- Harjit Singh