बाबा जी के साथ सूरतगढ़ में हुए सवाल जवाब।
सूरतगढ़ में बाबाजी के साथ संगत के सवाल जवाब हुए। पहला सवाल इस प्रकार था। बाबा जी परिवार का मुखिया जब कमाई करता है तो कमाई पर सभी का हक होता है। तो फिर कोई एक परिवार का मेंबर भक्ति कर ले तो उस पर सभी का हक क्यों नहीं होता? बाबा जी ने इसका उत्तर बड़े ही प्रेम से दिया। बाबा जी ने कहा बेटा जैसी करनी वैसी भरनी। आमतौर पर जब कोई बच्चा कहे कि मैंने पढ़ाई नहीं करनी तो क्या वह आगे बढ़ पाएगा? अपने सब्जेक्ट में पास हो पाएगा या आगे तरक्की कर पाएगा? हम ना आसान तरीका ढूंढते हैं। परमार्थ में एक बात तो पक्की है कि जो करेगा सो पाएगा। फिर उसी भाई ने कहा कि बाबा जी परिवार पर दया करना। तो बाबा जी बोले बेटा मालिक की तो दया ही दया है हमारे ऊपर। इतनी दया बरस रही है लेकिन हम उसकी कदर नहीं करते।
दूसरा सवाल किया गया कि बाबा जी बड़े महाराज जी बोला करते थे कि कर्म जो जो करेगा तू वही फिर भोगना भरना। बाबा जी क्या हम इस जन्म में पुराने कर्मों का हिसाब किताब दे रहे हैं? बाबा जी ने कहा कि बेटा यह जरूरी नहीं है। इस जन्म का भी हिसाब हो सकता है। सब कुछ मालिक के हाथ में है। जैसा बीज बोओगे वैसी ही फसल मिलेगी। अब कर्म किसे कहते हैं? जब हम कोई एक्शन करते हैं तो उसका रिएक्शन हो जाता है। और जैसे हम कोई करनी करते हैं वह हमारे करने के साथ-साथ कर्म में तब्दील हो जाता है। तो बात तो बेटा यही है कि एक्शन इस रिएक्शन। इस बात को अपने पल्ले बांध लेना है कि जब भी हम कोई कर्म करते हैं सोच समझकर करना है। और बेटा देखो आने जाने का सफर जो है वह अगर खत्म करना है तो वह तो नाम सिमरन के द्वारा खत्म किया जा सकता है और किसी के द्वारा नहीं।
अगला सवाल किया गया बाबा जी ध्यान नहीं लगता? बाबा जी बोले बेटा हमारा मन बहुत प्रभावित हुआ बैठा है। परमार्थ में जब हम आते हैं तो हमें एहसास होता है कि हमारा मकसद क्या है? बाबा जी बोले बेटा जो जिंदगी की किताब है ना वह कोरी किताब है। जो लिखा है वही उस किताब से निकलेगा। जब तक हम इसको मिटाए नहीं तब तक जब भी हम किताब खोलेंगे यह तो हमारे सामने आता ही रहेगा।
फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी हमें कैसे पता चले हम सही रास्ते पर चल रहे हैं? बाबा जी ने कहा बेटा यह तो सभी को पता है कि क्या ठीक है और क्या गलत है? बेटा किसी को भी दुख ना दें। किसी को भी नीचा ना दिखाएं। अपनी करनी ठीक करके चले। हम सारी उम्र दूसरों की बातें सुनेंगे तो हम अपना सब कुछ गवा कर बैठ जाएंगे। फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी मेरा परिवार सत्संगी परिवार है। वह कहते है कि आप बाबा जी का सत्संग सुनते हो तो आप गुरुद्वारे नहीं जा सकते। बाबा जी बोले बेटा यह कभी आपने मेरे मुंह से सुना है? बेटा हम जिस भी धर्म से जुड़े हैं हमने उसको गहराई से निभाना है। बिल्कुल गहराई से। बच्चा स्कूल जाए और पढ़े ना तो क्या कुछ सीखेगा? अगर हम किसी भी धर्म स्थान पर जाते हैं वहां जाकर हमने ग्रंथ पोथंयो को सुनना है बेटा। धार्मिक स्थलों का क्या मकसद था वहां पर संतो ने महात्माओं ने बैठकर हम जैसों को समझाया था और उपदेश दिया था। इसलिए धार्मिक स्थान बने हैं।
Posted by:- Harjit Singh