सूरतगढ़ में हुए सवाल जवाब बाबा जी ओर हजूर जी के साथ।

एक महिला ने सवाल पूछा कि बाबा जी मेरा बेटा चाहता है कि वह आपका बॉडीगार्ड बने। बाबा जी ने कहा मेरे को किससे डर है? मेरे को तो सिर्फ बीबियों से डर लगता है। फिर संगत जोर से हंसने लगी। फिर बाबा जी ने उस बीबी को समझाया कि मंदिर का मतलब क्या है? "मन के अंदर" और गुरुद्वारे का मतलब है "गुरु का द्वारा"। बाबा जी ने बाणी में से उसको उदाहरण दी "हरि मंदिर ये शरीर है। ज्ञान रतन प्रगट होए" बाबा जी ने कहा बेटा हरि का सच्चा मंदिर तो यह इंसान का शरीर है। 

फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी मैं किसी का भला करती हूं तो वो मेरी सुनते नहीं है। बाबा जी ने कहा बेटा मैं इसलिए कहता हूं कि मैं बीबियों से डरता हूं। बाबा जी ने कहा बेटा क्या हमारी सोच पर सारे चल सकते हैं? अगर एक बेवकूफ है तो हम दूसरा बेवकूफ तो ना बने। बेटा अगर एक गलती करी है तो हम तो उससे सीख सकते हैं ना। फिर वही बहन कहने लगी बाबा जी आजकल तो बेटा बेटी बराबर होते हैं बाबा जी फिर सारे फर्क क्यों करते हैं? बाबा जी ने कहा बेटा पुराने जमाने की बातें हैं। लड़कियों ने तो राज करना है। लड़के तो आपके गुलाम बनेंगे। बेटियों ने तो सारी उम्र मां-बाप का साथ देना है। बेटा तो तब तक ही अपना बेटा होता है जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती। जब उसकी शादी हो जाती है तो वह बीवी की गोद में जाकर बैठ जाता है। फिर संगत हंसने लगी। फिर उस बहन ने कहा कि बाबा जी मेरे पापा चिंता करते हैं कि मेरे भाई की शादी नहीं होती। बाबा जी बोले बेटा लड़का मोज कर रहा है उसे करने दो। शादी के बाद उसने गुलाम तो बन ही जाना है। सारी संगत हंसना शुरू हो गई। 

फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी मेरे मम्मी को नामदान की पर्ची नहीं मिली क्योंकि वह कहते हैं कि आप केक खाते हो। तो बाबा जी बोले बेटा कि केक में भी तो एग होता है इसलिए उन्होंने मना किया होगा। तो लड़का बोला बाबा जी क्या एगलेस खा सकते हैं केक? तो बाबा जी ने कहा कि बेटा केक जो है बिना एग के नहीं बनता है। मिलावट तो किसी ना किसी चीज में होती ही है। यह नहीं होता कि आप एगलेस खा रहे हो। वो आपके सामने थोड़ी बनाते हैं। 

अगला सवाल किया गया बाबा जी आपकी तबीयत कैसी है? बाबा जी बोले कि बेटा तेनू की मैं माड़ा लगदा? सारी संगत जोर-जोर से हंसने लग पड़ी। फिर उस भाई ने आगे पूछा कि बाबा जी क्या सोच से भी कर्म बनते हैं? बाबा जी बोले बेटा जब हम एक चीज को बार-बार सोचते रहते हैं और उसकी गहराई में चले जाते हैं ओर गहराई में जाने के बाद उसका रिएक्शन जरूर होता है। वह करनी में जरूर आता है। और उससे हमारे कर्म बन जाते हैं। बाबा जी बोले बेटा संतों ने इसीलिए कहा है कि भाई माड़ी सोच को भी ना आने दो दिमाग में। 

फिर अगला सवाल किया गया कि बाबा जी क्या एक से ज्यादा गुरु बना सकते हैं? बाबा जी बोले आप चाहे 10 बना लो। बाबा जी बोले बेटा क्या शादी के बाद आप दस बीवियां संभाल सकते हैं? तो आगे से वह भाई बोला कि बाबा जी नहीं। बाबा जी बोले कि आप सभी को ना गुरुओं की वैरायटी चाहिए। जब मौत हो जाएगी तो फिर अंत समय कौन लेने आएगा? बेटा इस जमाने में तो एक बीवी संभाल लो वही बहुत बड़ी बात है। सारी संगत जोर जोर से हंसने लगी। 

फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी मेरा स्टडी पर फोकस नहीं होता। बाबा जी बोले बेटा मेरा भी नहीं होता था।। सारी संगत जोर-जोर से हंसने लग पड़ी। मेरी मां ने कहा था कि यह डंडे के जोर से पढ़ेगा। मेरी मां ने मेरे लिए डंडा उठा लिया था और मुझे डंडे के जोर से पढ़ाया। बेटा देखो हमने किसी के मोहताज नहीं होना है। अब मौका मिला है तो जी जान से पढ़ाई करनी है। इस मौके का फायदा लेना है। बाद में यह ना हो कि हम किसी के मोहताज होकर बैठ जाए। 

फिर अगला सवाल किया गया बाबा जी पृथ्वी कैसे बनी है? साइंस ने अपनी तरफ से बहुत कुछ लिखा है लेकिन बाबा जी जो पृथ्वी है वह तो एक क्रिएटिव पावर से बनी है ना। फिर साइंस ने ऐसा क्यों लिखा है? बाबा जी ने कहा बेटा जितना दायरा इंसान का होता है तो वह उसी दायरे में रहता है ना। बच्चा कहे कि मेरा जन्म कैसे हुआ तो मां-बाप उसको कहानी सुना देते हैं। जैसे ही बच्चा बड़ा हो जाता है और उसका दायरा खुल जाता है उसे समझ आ जाता है कि कैसे जन्म होता है। जैसे हम अंदर मालिक की भक्ति करेंगे तो हम उस अवस्था में पहुंच जाएंगे। तो हमें अपने आप सारा कुछ समझ आ जाएगा। 

फिर बहन बोली लास्ट में कि बाबा जी बाहर के और अंदर के दर्शनों में क्या फर्क है? बाबा जी बोले बेटा बाहर के दर्शन जो होते हैं वह प्रेरणा देने के लिए होते हैं। असल के दर्शन अंदर के दर्शन है जिससे हमारे कर्म खत्म हो जाते हैं। तो यह सवाल जवाब हुए थे सूरतगढ़ में।

Posted by:- Harjit Singh